Sunday, June 20, 2010

पैगाम

आज सुबह  तेरे  नाम  की  धुप आई है ...
तेरी  मुस्कराहट  का  पैगाम  लाई  है 
है  उसको  सब  पता  तेरे  दिल  का ...
बस  पलकें  उठा  कर  देख  
चांदनी  सी  शांत  धूप  सी नरम  
उसके दिल से एक  बात  लाई है .........

अमित

Sunday, June 6, 2010

आरज़ू

बहुत दिनों से कोई आहट नहीं  हुई
तेरी कलम से गुफ्तगू नहीं हुई
किस कशमकश मे है तुम्हारी सोच
की किसी तुम्हारे ख्याल से मुलाकात नहीं हुई
आज फिर टपकती बूंदों की कलाहल में कुछ आरज़ू है
तेरे साथ मुशैरे मैं गुफ्तगू की आरज़ू है
चल दोस्त उन शब्दों  के जाल कुछ इस तरह बुने
कुछ दिल की बातो से दोस्ती के नये मायने गिने
इस कविता को अधुरा छोड़े देता हु
की मिल कर अपने ख्यालो से इसे पूरा करें...


अमित खन्ना

वहा नज़ारा क्या होगा जहा तेरा मुकाम होगा

वहा  नज़ारा क्या होगा जहा तेरा मुकाम  होगा 
उस वक़्त को हम भी देखे गे जब फलक से टूटता तारा तेरा निशा होगा
शायद वोह भी फना हो जायेगे तेरी मोहोबत का वोह असर होगा 

बात इतनी सी थे की तुम्हे इश्क था और उन्हें कहा तो होता 
वोह गुम सा खड़ा तेरी मजार पर सोचता है 
इश्के ईलम तेरा होता तो अरजो मे दिल तो मेरा भी धडकता होता

बस सोचता हु वहा  नज़ारा क्या होगा जहा तेरा मुका होगा 
वोह अश्क भी सूख जाये गे तेरे प्यार  का वोह असर होगा
आज तेरी दूरी फिर भी कट जायेगे
पर उस मुकाम से लोटना मुश्किल होगा........

अमित खन्ना