Sunday, June 6, 2010

वहा नज़ारा क्या होगा जहा तेरा मुकाम होगा

वहा  नज़ारा क्या होगा जहा तेरा मुकाम  होगा 
उस वक़्त को हम भी देखे गे जब फलक से टूटता तारा तेरा निशा होगा
शायद वोह भी फना हो जायेगे तेरी मोहोबत का वोह असर होगा 

बात इतनी सी थे की तुम्हे इश्क था और उन्हें कहा तो होता 
वोह गुम सा खड़ा तेरी मजार पर सोचता है 
इश्के ईलम तेरा होता तो अरजो मे दिल तो मेरा भी धडकता होता

बस सोचता हु वहा  नज़ारा क्या होगा जहा तेरा मुका होगा 
वोह अश्क भी सूख जाये गे तेरे प्यार  का वोह असर होगा
आज तेरी दूरी फिर भी कट जायेगे
पर उस मुकाम से लोटना मुश्किल होगा........

अमित खन्ना

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